Friday, April 3, 2009

होता था एक पेड़
कभी इस गली में
नुक्कड़ पर बैठते थे फेरीवाले
पानी की खुली नालियों से बहता था गुंजान घरों का जीवित मैला
कोई पुकारता था आके सवेरे कि
उठो जागो आज के दिन की सौगातें लाया हूँ
अपनी अपनी झोली भर ले जाओ
कभी होता था यहाँ इस गली में कितना कुछ
जो दिन भर साये की तरह साथ चलता था
अब हम सब अकेले घुम्तें हैं
और अकेले जाते हैं
और अकेले आ जाते हैं।

कोमल

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